अश्वगंधा एक हर्बल औषधी है, जिसका वर्षों से उपयोग भारतीय संस्कृति में किया जा रहा है। इसे भारतीय जिनसिंग कहा जाता है जो सोलानसी प्रि. परिवार से संबंधित है। अश्वगंधा के विंटर चेरी भी कहा जाता है। अन्य नाम: शिवराया

अश्वगंधा भारतिय उपमहाद्वीप में सर्वप्रथम खोजा गया था। इसका वर्णन कई ग्रंथों जैसे चरक संहिता तथा अथर्ववेद संहिता में भी किया गया है। इसका बोटनिकल नाम Somnifera है जो सोलानसी (टमाटर, आलू, बैंगन आदि) परिवार से संबंधित है।
विभिन्न रोगों में अश्वगंधा के उपयोग:
- तनाव को कम करने में सहायता करता है।
- बेहतर नींद के लिए उपयोग में लाया जाता है।
- मस्तिष्क की कार्य क्षमता को बढ़ाता है।
- सूजन को कम करने में मदद करता है।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
त्रिदोषों में अश्वगंधा का उपयोग:
- पित्त दोष में अश्वगंधा का इस्तेमाल:
पित्त दोष में अश्वगंधा का उपयोग घी या नारियल तेल के साथ करना चाहिए। - वात दोष में अश्वगंधा का इस्तेमाल:
वात दोष में उपयोग अत्यंत फायदेमंद होता है। वात दोष वायु तत्व से संबंधित होता है → जिससे अधिक रोग होते हैं, जैसे जोइंट पेन, तनाव, नींद न आना आदि। - कफ दोष में अश्वगंधा का उपयोग:
कफ दोष शरीर के जल और पृथ्वी तत्व से होता है। इसके असंतुलन में अश्वगंधा का इस्तेमाल अत्यंत सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए।
अश्वगंधा का उपयोग कैसे करें:
- अश्वगंधा का इस्तेमाल दूध के साथ:
अश्वगंधा ग्राम भर को दूध में उबालकर लेना चाहिए। - पानी के साथ:
अश्वगंधा पाउडर को पानी में उबालकर लिया जा सकता है। - कैप्सूल:
अश्वगंधा का उपयोग कैप्सूल के रूप में भी किया जाता है।
अश्वगंधा का उपयोग किस मौसम में करना चाहिए?
यह गर्म प्रकृति की जड़ी-बूटी है, इसलिए इसका उपयोग शीत ऋतु में करना चाहिए। शरद ऋतु में इसका सेवन फायदेमंद होता है।
सावधानियां:
(a) गर्भवती महिलाओं के लिए – गर्भवती महिलाओं को अश्वगंधा का उपयोग करने से पहले डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।
(b) बच्चों के लिए – बच्चों को सीमित मात्रा में ही अश्वगंधा का उपयोग करना चाहिए।
(c) बीमार व्यक्ति के लिए – यदि कोई व्यक्ति किसी बीमारी से ग्रस्त है तो उसे अश्वगंधा सेवन से पहले डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।