विरेचन शांत करती है पित्त को: जानिये विरेचन के घरेलू नुस्खे

पित्त को शांत करने में विरेचन बहुत अहम भूमिका निभाता है। विरेचन को घर पर बहुत आसानी से किया जा सकता है , जानिये विरेचन के घरेलू नुश्खे………..

Vicharan Process Images

विरेचन एक शरीर की शुद्धि की प्रक्रिया है जिसका भारतीय संस्कृति में प्राचीन समय से उपयोग होता आ रहा है। इसका वर्णन चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, और अष्टांग हृदय जैसे आयुर्वेद के मुख्य ग्रंथों में मिलता है।

विरेचन क्या है ? क्या यह पंचकर्म का भाग है ?

विरेचन शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकलने की एक प्राचीन आयुर्वेदिक प्रक्रिया है , जिसमे रेचक पदार्थो की मदद से पित्त को शरीर से बाहर निकाला जाता है।
यह पंचकर्म का एक भाग है , जिसका उपयोग प्राचीन वैद्य शरीर में त्रिदोषों को संतुलित करने के लिए करते थे।

विरेचन के लाभ क्या है ?

विरेचन के अनेक लाभ है जिसमे से मुख्य निम्न है :

  • त्वचा की एलर्जी में तथा पित्ती में बहुत लाभकारी होता है
  • एसिडिटी को कम करता है
  • पाचन तंत्र में सुधार आता है
  • अत्यधिक आने वाले पसीने को कम करता है
  • ओवर थिंकिंग को कम करने में सहायता करता है
  • तनाव से मुक्ति दिलाता है
  • आंत से गंदगी को निकलता है
  • सुस्ती तथा कमजोरी को दूर है

विरेचन करने के घरेलू नुस्खे क्या है ? घर पर विरेचन कैसे किया जाता है ?

विरेचन के प्रमुख 3 चरण होते है जिसके द्वारा विरेचन क्रिया पूरी होती है , यह निम्न है:

1.पूर्व कर्म
2.विरेचन क्रिया
3.पश्चात कर्म

इन विधियों को स्पष्ट रूप से इस प्रकार समझा जा सकता है:

पहले दिन – 30 मिली मेडिकेटिड घी
दूसरे दिन – 60 मिली मेडिकेटिड घी
तीसरे दिन – 90 मिली मेडिकेटिड घी
चौथे दिन – 120 मिली मेडिकेटिड घी
पांचवे दिन – 150 मिली मेडिकेटिड घी तथा रात में कफ बढ़ाने वाले पदार्थ
छठे दिन – सुबह वमन तथा दोपहर को स्नेहन
सातवें दिन – विरेचन

1.पूर्व कर्म:

पूर्व कर्म में 2 विधियों को अपनाया जाता है , जिसमे पहली को वमन तथा दूसरी को स्नेहन कहा जाता है ।
वमन के लिए पूर्व रात्रि में व्यक्ति को कफ बढ़ाने वाला भोजन जैसे दही , मिठाई , बासमती चावल दिया जाता है , ताकि शरीर से अधिकतम कफ को बाहर निकाला जा सके। दूसरे दिन सुबह मदोफ्ला ,नद्यपान और कैलमस रुट चाय दी जाती है जिससे उल्टी अनुभव कराई जा सके।इसके पश्चात उल्टी से सारा कफ बाहर निकल जाता है।
इसके पश्चात हल्का भोजन करना चाहिए , न की भारी तथा हो सके तो उपवास भी रखा जा सकता है।

स्नेहन, पंचकर्म की एक पूर्व क्रिया है , इसके लिए पहले कुछ दिन शरीर को औषधीय तेल से मालिश किया जाता है , जिससे पित्त सारा शरीर के आंतरिक हिस्सों में इक्क्ठा हो सके तथा विरेचन के दौरान शरीर से बाहर निकाला जा सके।


2.विरेचन क्रिया:

विरेचन के लिए सुबह रेचक पदार्थो का उपयोग किया जाता है जैसे अरंडी का तेल (3 से 4 चम्मच ), त्रिफला चूर्ण या अन्य कोई रेचक पदार्थ।
इससे बार बार दस्त लगते है , जिससे शरीर में एकत्रित सारा पित्त मल मार्ग से बाहर निकल जाता है।
पहले शरीर से मल बाहर आता है फिर पीला पदार्थ जो पित्त होता है तथा अंतिम रूप में जब सिर्फ पानी आने लगे तब समझ जाना चाहिए की सारा पित्त बाहर आ गया है।

3.पश्चात कर्म:

विरेचन के पश्चात् का कर्म जीवन शैली से सम्बंधित है , इसमें व्यक्ति को कुछ दिन अपनी दिनचर्या पर ध्यान देना पड़ता है।
शुरू के एक से 2 दिन कुछ न खाकर मात्र सूप पीना चाहिए।
इसके पश्चात हल्का खाना जैसे खिचड़ी , दलिया इत्यादि 5 , 7 दिन खाना चाहिए।
इसका मुख्य कारण है की शुरू में आंत ज्यादा भारी खाना पचा नहीं पाती तथा इसके अन्य नकारात्मक प्रभाव भी है।

विरेचन के दौरान क्या सावधानियां रखनी चाहिए ?

हालाँकि विरेचन एक बहुत अच्छी विधि है जो शरीर के विषाक्तों को बाहर निकालती है किन्तु इसे करने लिए निम्न सावधानियां बरतनी चाहिए:

  1. पर्याप्त पानी पिएं
  2. हल्का आहार लेना चाहिए
  3. पर्याप्त नींद लें
  4. 7 8 दस्त विरेचन में साधारण है किन्तु ज्यादा होने पर चिकित्सकिय सलाह ले
  5. ज्यादा मतली या उल्टी आये तो भी चिकित्सकिय सलाह ले

किन लोगों को विरेचन नहीं करना चाहिए ?

बीमारी से ग्रसित व्यक्ति:
अगर कोई व्यक्ति किसी बीमारी से ग्रसित है तो उसे चिकित्सकिय सलाह द्वारा ही विरेचन करना चाहिए

गर्भवती महिलाएं:
गर्भवती महिला है तो उसे चिकित्सकीय सलाह द्वारा ही विरेचन करना चाहिए।